भगवान गणेश,
हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं जिन्हें 'विघ्नहर्ता' और 'सर्वविधिप्रद' कहा जाता है। गणेश जी की पूजा हिन्दू समाज में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और उन्हें समस्त शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजा जाता है। भगवान गणेश की भक्ति में ही भक्ति ही शक्ति का सार है।
भगवान गणेश पूजा में भक्ति ही शक्ति
गणेश जी के पूजन में 'भक्ति ही शक्ति' का सिद्धांत प्रमुख भाग है। भक्ति के माध्यम से ही भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से ही सभी कार्यों में सफलता मिलती है। भगवान गणेश की मूर्ति पर मन से सारे विघ्नों को दूर करने की श्रद्धा और विश्वास के साथ भक्ति करने से ही व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में समर्थ होता है।
भक्ति ही शक्ति का अर्थ है कि जब भक्त अपने इष्ट देवता के प्रति पूर्ण समर्पण और श्रद्धा रखता है, तो उसे देवता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। गणेश भगवान को पूजने से भक्त का मन पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है, जिससे उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
भगवान गणेश का मूर्तिरूप हाथीकेशव कहलाता है, जिसमें वे एक हाथी के समान मुखरूप में प्रतिष्ठित हैं। इस मूर्ति के माध्यम से ही भक्त गणेश जी के साथ अपनी भक्ति को व्यक्त करता है और उनसे सहायता मांगता है। भक्ति ही शक्ति का सिद्धांत यहाँ भी दिखाई देता है, क्योंकि गणेश भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ ही भक्त को उनकी कृपा प्राप्त होती है।
श्लोक
गजाननं भूतगणादि सेवितं,
कपित्थजंबूफलसारभक्षितम्।
उमासुतं शोकविनाशकारणं,
नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।
इस श्लोक में भगवान गणेश के प्रति नमन है
इसका अर्थ है:
"मैं भगवान गणेश के पदकमल की प्रणाम करता हूँ, जिन्हें भूतगण सेवित करते हैं, जंबू और कपित्थ फलों का रस भक्षित करते हैं, जो देवी उमा (पार्वती) के पुत्र हैं और जो शोक का नाशक हैं।"
समाप्ति
भगवान गणेश के माध्यम से भक्ति ही शक्ति का सिद्धांत हमें उच्च उद्दीपना और आत्म-समर्पण की ओर मुख करता है, जिससे सभी कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है।
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